Monday 18 June, 2007

बिस्‍मिल्‍लाह हिर्रहमान निर्रहीम
हम कुछ लोग जिनमे अंदर हक को तलाश्‍ करने की जुस्‍तजु थी वे और उन लोगो को जिन्‍हे हक की तलाश्‍ का शौक है उन तक अपनी बात पहुंचाने और उनकी बात सुनने की तड़प ने इस ब्‍लाग को शुरू करने की तरफ पहला कदम बढाया है और उस जात से जिसके कब्‍जए कुदरत मे हम सबो की जान है से उम्‍मीद करते है कि हम सब मिलकर उस राह पर चल पड़ेगे जिसकी वसीयत हमारे प्‍यारे नबी हज़रत मुहम्‍मद सल्‍ल0 ने दुनिया से तश्‍रीफ ले जाते वक्‍त हमारे लिए फरमाई थी
आईये हम और आप मिल कर उस हक की तलाश्‍ करे जो हमसे छुपाया गया है हर उस सुन्‍नत को जिंदा करे जो वक्‍त के साथ्‍'साथ्‍ मुर्दा हो गई है और 100 श्‍हीदो का सवाब पाने के साथ्‍ साथ्‍ सही मायने मे ला इलाहा इल्‍लल्‍लाह का हक अदा करे (आमीन)

No comments: